इस रेत पे चले हज़ारों कदम,
आज निशाँ इक कदम का भी नहीं.
इस रेत पे बरसा पानी अटूट,
आज बूँद कहीं इक भी नहीं.
इस रेत ने ही है समेटा,
मेरे आन्सुयों को बरसात के संग
इसी रेत ने ही मिटाये तेरे निशाँ मेरे दिल से
उन क़दमों के संग ही तो...
रेत समां ले फिर मुझे खुद में
या सिमट जा मेरी बाहों में
बस मेरी ही बन के...
Vim Copyright © 2009
Monday, December 28, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
its beautiful
ReplyDelete