Monday, December 29, 2008

नए साल पे इक पुरानी दुआ...

दुआ निकलती है, नए साल के नाम पे,
आँख भर आती है, गुज़रे साल की याद से.


उम्मीद बस यूँ ही है नए साल से,
कि कत्ल न हों, न चले बंदूकें, न हो बमबारी कहीं,
इश्क रहे, रहे दोस्ती, और बढें प्यार की बाहें हर कहीं,
ना मिले कातिलाना वो, जो मिला गुज़रे साल में.
दुआ है बस यही, आने वाले साल में.

गुज़रा तो गुज़र गया, चलो कुछ यूँ करें,
थाम लें बांह इक दूजे की, आओ कुछ कदम, साथ साथ चलें.


मुबारक हो साल नया,
दे यह खुशियाँ हज़ार, और प्यार नया,
हो उम्मीद से भरा, यह संसार नया
जिंदगी का हो हर रुखसार नया,
मुबारक हो यह साल नया!
मुबारक हो यह 2009 नया!



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Wednesday, December 10, 2008

The New Morning...

Punjabi Sher:
Eh maadi jehi, jehri dil wich agan hai
Main manaya, ki is di badi hi jalan hai
is nu aiveen hi yaaro, bhuja na dena
kitre ehi, kal da sawera na hove..

Transcript:
This little spark of fire,
is hidden inside me
has the power to burn me up
alive and until I am done...
don't let it die, don't let it fade
who knows, if this is the light
at the end of a tunnel...

Originally written in Punjabi by Surjit Pattar, translated in English by VJ.

Let this fire be the light at the end of the tunnel.

Transcipt Vim Copyright © 2008

Wednesday, October 15, 2008

Do saal - Oct 15, 2008

ना तूफ़ान दिखा,
ना आंधी आई,
ना चमकी बिजली ही,
ना बुझी शमा ही...

बस यूँ ही गुज़र गया यह बरस भी,
बस यूँ ही बिगड़ गई उस की नज़र भी,
बस यूँ ही फेर ली गई शक्लो-सूरत भी,
बस यूँ ही देश अपना हो गया पराया,
बस यूँ ही उठ गया सर से वो साया,

दो साल हो गए आज...
छोडे उस मिट्टी को...
सूंघे उस खशबू को...
महसूस किए हुए,
उस शान की सभ्यता को...
जिगर से लगाये....
उस ईमान के इश्क को!

दो साल हो गए आज...
दो साल गुज़र गए
गुजरी यादों के साथ...

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Monday, September 29, 2008

मेरी सलीब

अपने कांधों पे उठाना है मुझे,
मेरी ही सलीब को
इस शहर में,
इस आसमान के नीचे ही.
यह सलीब, न किसी ने देखी, न जानी ही
अनजानी, इस सलीब को लिए कंधो पे
कोशिश करती हूँ,
पहचानने को, ख़ुद को,
ख़ुद के अन्दर से.
निकालने को, ख़ुद को,
ख़ुद की गहराई से.

और यह सलीब है कि
धकेले जाती है
ख़ुद को ख़ुद में ही...
डोबोये जाती है
अपने ही लहू के पानियों में
लिए इस सलीब को ही
जीना है मुझे
उभरना भी है
आगे बढना भी है
लिए अपनी सलीब अपने ही कांधों पे...

Vim Copyright © 2008

One of those poems, which makes me think a lot...makes me bring change, redrafting after drafting. Help me fixing it friends....I have a junoon to fix it now!

Thursday, July 3, 2008

Patang aur Us ki Dori....

पतंग कट गई
उड़ गई डोरी अकेले
साथ देने का वायदा जो किया था
वो डोरी आज है कहीं
पतंग है कहीं और

इस पतंग के संग रही डोरी
इस डोरी ने उड़ना तो सिखा ही
संग दिया उड़ने का भरोसा भी
सिखा डोरी ने जीना
तो सिखाया जीना भी
सहना ढेर सा
सह पाना उस से ज़्यादा
उस सहने की हिम्मत गई जब थम
उड़ गए वो अकेले अकेले
अपनी दिशा की ओर...
पतंग और पतंग की डोरी...

Vim Copyright © 2008

July 03 2008
4.33 AM

Tuesday, January 22, 2008

a poem

My soul looked at me
then looked at Angel
I felt that terrible feeling
and my soul flew away...

Guess this was the right moment
to realize that
I never helped anyone
I never gave my hand to someone
I never offered anything more than alcohol
I never was a HUMAN


Now I am a soulless person
But isn't everyone else too?


Vim Copyright © 2009