Monday, December 28, 2009

Sand...

इस रेत पे चले हज़ारों कदम,
आज निशाँ इक कदम का भी नहीं.

इस रेत पे बरसा पानी अटूट,
आज बूँद कहीं इक भी नहीं.

इस रेत ने ही है समेटा,
मेरे आन्सुयों को बरसात के संग
इसी रेत ने ही मिटाये तेरे निशाँ मेरे दिल से
उन क़दमों के संग ही तो...

रेत समां ले फिर मुझे खुद में
या सिमट जा मेरी बाहों में
बस मेरी ही बन के...

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